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Friday 26 July 2013

"प्यार का हो व्याकरण" (दिलीप कुमार तिवारी "घायल")

 अमल नवल है सुमन
रूप का प्रबल चमन
हो जहाँ सबल सृजन  
अमन का हो आवरण

क्यों न फिर पड़े वहाँ
देवताओं के चरण
वाद हो विवाद हो
दुःख का विषाद हो
किन्तु बात-बात में
प्यार का हो व्याकरण
शान्ति का वातावरण

प्रीत की हो भावना  
गीत की हो साधना  
देख कर पड़ाव को
दिल कभी न हारना
जाति-पाति. रंग-रूप
भेद-भाव हो हवन

खेत हो हरा-भरा
सजी हुई रहे धरा
वीरता का मान हो
चारों ओर ज्ञान हो
वसुन्धरा को सब करें
नित्य-नित्य ही नमन

मस्त यहाँ शाम हों
खास यहाँ आम हों
विश्व में सभी जगह
मनुष्यता का नाम हो
स्वतन्त्रता बनी रहे
कम न हो कभी लगन

शान हो किसान की
आन गो जवान की
घायल की है विनय
जोत जले ज्ञान की
जर्रे-जर्रे में रहे
अपने देश में अमन

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